रौशनी सी याद (ROSHNI SI YAAD)
बंद कमरों की अंधेरों में रौशनी सी याद आती है
चुपके चुपके गले लगाने की
आहें आहट से बचाकर भरने की
इन कमरों में अब तुम्हारी हसी की खुशबू नहीं
या तुम्हारी सुरीली आवाज़ की ताजगी
मैं इन अंधेरों में खोजता हूँ
उन रोशन पलों को
खुदको !
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संतोष कुमार कान्हा
(काठमांडू , 2013)
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