रिश्ते ऐसे ख़त्म होते हैं जैसे
किसी बड़े कार्यक्रम के बाद सारी सजावट उतर जाती है
मैदान और मंच खाली हो जाते हैं
फिर एक बार वहीँ शामिल होके देखो
सब कुछ खाली दिखता है
रंग नहीं, सजावट नहीं, आवाज़ नहीं, रौनक नहीं
ऐसा ज़रूर लगेगा कि कुछ ख़त्म हो गया है
कुछ सूना सा लगता है
कुछ वीरान,
अपने आपको अजनबी जैसा लगता है
बारिश की गंभीर रात के बाद एक गुप्त सन्नाटा जैसे।
पत्त्तों में हवा बेमंज़िल, बेवजह टकराती है
कुछ भी मेहसूस नहीं होता है
खुदको खुदकी छाया जैसा लगता है
रिश्ते गंभीर आवाज़ से नहीं टूटते
बल्कि एक सिसकी जैसे,
नींद खुलते ही ख़त्म होते सपने जैसे,
एक जला हुआ रुपया जैसे दिखते हैं।
--- संतोष कुमार कान्हा , 2013
1 comment:
Life is all all about relationship but expectations make things come and go it is your confrontation of the self which gives you pain not the relationship it only imparts learning
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